चौथा पहर

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रात का यह चौथा पहर,

राधा के लिये ,

जैसे ज्येष्ठ- आषाढ़ की शिखर दुपहर ।

तीन पहर बीत गये काहना के हुए दीदार,

रात का  यह चौथा पहर ,

राधा पर ढाता कहर।

 

रात का यह चौथा पहर,

रुक्मणि  सोई ,

जैसे  बेच  शहर- बाज़ार ।

नींद गहरी मन में चैन,

सपने देखते नाचें नैन ,

यह रात का चौथा पहर,

रुक्मणि पर बिखेरता सुनहर।

 

रात का यह चौथा पहर,

मीरा के लिये एक बराबर,

क्या जंगल क्या शहर ।

पालने में शाम,

झुलारे देते नहीं झपकते नैन।

एक ही लोरी ,एक ही ध्यान—मेरे गिरधर गोपाल  दूजा न कोई,

उसके लिये एक बराबर अमृत और ज़हर।

मदहोश, मदमस्त ,बेखबर

कब सांझ ढली, कब हुई सवेर,

जिसके लिये युगों की नहीं गिनती ,

उसके लिये क्या पहला और क्या चौथा पहर ।

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Shashi Pathania
Born in July, 1955, Prof. Shashi Pathania is an academically experienced individual with a doctorate in Dogri (Dogri Verb), serving through various positions (including H.O.D.) within the Department of Dogri (Jammu University) retired as Professor in Dogri. She started writing in Dogri in the year 1984 and has written prolifically in various genres of Dogri including short story and poetry and has been Co-guide a scholar at Ph.D. level for making Machine translation tool. She has been conferred Sahitya Akademi Translation Award for the year 2012 in Dogri.

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