बादल बरसा
पानी बहा
जल-थल एक हुआ
धरती ने सहा ,
अपने सूरज की अमानत मान
अपने अंदर भरा।
लौटाने की जन्मजात वृत्ति से प्रेरित
सृजन में रत्त
अपने हृदय से लगा कर
फिर लौटा कर
हो जाएगी तृप्त
सूरज से अपना
युगयुगांतर का रिश्ता निभा कर।
और साथ ही सारी सृष्टि को उसकी होने का मर्म समझा कर, विश्वास दिला कर ।